आंखे सपना कैसे देखे, सपनो पर तो पहरे हैं, झूठो की मंडी मे फिर से वही पुराने चेहरे हैं। उनके मेरे भारत मे, अब अंतर तो बस इतना है, उनके हिस्से ए बी सी डी,अपने वही ककहरे हैं। यू ही हाथ मिलाते रहना,अब तो सबकी आदत है, मन मे मैल लिए फिरते हैं,चेहरे सभी सुनहरे हैं। नाप रहे हैं सही गलत को,आंखे बंद किये देखो, पैमाने सब झूठे हैं इनके,मापदंड भी दोहरे हैं। सुबहा रात से डरी हुई है, रात भी दिन से सहमी है, कैसे भला दिनमान को समझें,कोहरे हैं बस कोहरे हैं। ●●●●●●कुमार देवेश। #कोहरा