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हमारी कहानीयाँ थी तो सुनने के काबिल पर ज़माने में

हमारी कहानीयाँ थी तो सुनने के काबिल पर ज़माने में सब्र कहांँ था, की जो बातें रह गई कहता मैं उस पर गौर कर लेते, लोगों का काम था बस जो निकल गया हम तो रूके रह गए ठहरे हुए से कहीं किसी कोने में

©SAHIL KUMAR
  पता नहीं क्यों
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SAHIL KUMAR

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पता नहीं क्यों #कविता

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