सर्प डरती दुनिया दूर भागती दिखते ही कोई सर्प विष का प्याला उसके भीतर मगर नहीं है दर्प वह छुप करके बिल में रहता कोई न देखे उसको कहता नहीं डसुंगा उसको जो छेड़े न मुझको मैं जहरीला हूँ फिर भी है मुझको बहुत ही खतरा शत्रु समझकर मानव मुझसे वैमनश्य पर उतरा मुझे कैद में रखते जबरन बनकर लोग सपेरा नाच नचाते बाजारों में मेरा छीनकर डेरा बेखुद मेरा विष ही मेरा बना है जानी दुस्मन बार बार पछताऊं पाकर इक विषधर का जीवन स्वरचित सुनील कुमार मौर्य बेखुद गोरखपुर उत्तर प्रदेश ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #सर्प