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लौट आना तुम , जैसे लौटतें है परिंदे शाम को अपने घो

लौट आना तुम , जैसे लौटतें है परिंदे शाम को अपने घोंसले में । 
लौट आना इस तरह, जैसे पूरवैय्या हवा लौटती है सावन में ।
लौट आना तुम, जैसे लौटता है मानसून हर बरस ।
लौट आना तुम, टेसुओं के फूल की तरह फागुन में ।
लौट आना तुम जैसे पंखुड़ियां लौटती हैं गुलाब में ।
लौट आना तुम वैसे जैसे झड़े पत्ते फिर सावन में लौट आते हैं पेड़ों पर ।
लौट आना तुम, आम के डाली पर कूहूकते कोयल की तरह ।
लौट आना तुम, जैसे लौटता है हर रोज सूरज ।
लौट आना तुम, जैसे हर रात चांद लौटता है आसमां में
लौट आना तुम, जैसे सुबह लौटती है रात के बाद ।
लौट आना तुम जैसे हर दुख के बाद सुख लौटता है।
लौट आना तुम वैसे जैसे हर विरह के बाद मिलन लौटती है ।
लौट आना तुम वैसे जैसे लौटना हो तुम्हें सिर्फ लौटने के लिए ।
©किशोर #लौट आना तुम
लौट आना तुम , जैसे लौटतें है परिंदे शाम को अपने घोंसले में । 
लौट आना इस तरह, जैसे पूरवैय्या हवा लौटती है सावन में ।
लौट आना तुम, जैसे लौटता है मानसून हर बरस ।
लौट आना तुम, टेसुओं के फूल की तरह फागुन में ।
लौट आना तुम जैसे पंखुड़ियां लौटती हैं गुलाब में ।
लौट आना तुम वैसे जैसे झड़े पत्ते फिर सावन में लौट आते हैं पेड़ों पर ।
लौट आना तुम, आम के डाली पर कूहूकते कोयल की तरह ।
लौट आना तुम, जैसे लौटता है हर रोज सूरज ।
लौट आना तुम, जैसे हर रात चांद लौटता है आसमां में
लौट आना तुम, जैसे सुबह लौटती है रात के बाद ।
लौट आना तुम जैसे हर दुख के बाद सुख लौटता है।
लौट आना तुम वैसे जैसे हर विरह के बाद मिलन लौटती है ।
लौट आना तुम वैसे जैसे लौटना हो तुम्हें सिर्फ लौटने के लिए ।
©किशोर #लौट आना तुम
kishorjha3995

Kishor Jha

New Creator