स्त्री का जीवन किरदार निभानें आएं हैं। किरदार निभाकर जाएंगे। मिट्टी के पुतले हैं हम सब। मिट्टी में ही मिल जाएंगे। शाश्वत नियम यह सृष्टि का। बदलेगा जो कभी नहीं। उसमें भी नारी का जीवन। दिन-रात बिखरता पत्तों सा। पतझड़ के मौसम सा जीकर, वह फूल खिलाती उपवन में। वेदनाओंके पर्वत पर वह, कुटज फूल सी खिलती है। माँ के रूप में वह नवगान सृष्टि का करती है । लूटाकर प्यार अनोखा धरती पर। वह मरती और बिखरती है। स्त्री का जीवन