मज़कूर हुए भी महफ़िल में, तो मुश्क़िल था तन्हा हमारा यूँ मुस्कुराना, ज़िक्र तेरा भी कर देते, पर नहीं जी किया के कौन खोले वो पिटारा पुराना, छोड़ चुके इश्क़ में ताश के पत्तों सा महल बनाने का, था कभी जो शौक़, कुफ़्ल लगाके सोच पे अपनी बैठा है तैयार, यहाँ फूँक मारने को ज़माना। - आशीष कंचन मज़कूर = जिसका ज़िक्र किया गया हो कुफ़्ल = ताला #थाकभी #collab #yqdidi #yqbaba #yqquotes #yqtales #yqhindi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi