कहाँ हो दिल्ली के सरदार।। गली हर हुई शराबी यार, बिका ईमान बना लाचार। जीतकर गये भला क्यों हार, बना दिल्ली को दिया बिहार।। नींव धँस गयी, नांव फँस गयी,फँसा इनामी नंगा। पोल खुल गयी,नींद धुल गयी,धुला तुम्हारा दंगा।। रहो निज बारी को तैयार। कहाँ हो दिल्ली के सरदार।। सिंह सी करते रहे दहाड़, गये सब प्यादे जेल तिहाड़।। काँपते शीशमहल में हाड, रहे हो खिड़की से क्यों ताड़।। जेल मिल गयी,बेल हिल गयी, हिला हवाई अड्डा, सांसत में जी रहे तुम्हारे, प्यारे राघव चड्ढा। और हैं कितने अब किरदार। कहाँ हो दिल्ली के सरदार।। ©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar #blindtrust