अब तो तुम्हें बगीचे मे बैठी कोयल की कुक भी भाने लगी है हाथो मे मेहंदी चढ़ी नहीं फिर भी एक अनजानी खुशबू तुम्हे महकाने लगी अभी ये पता लगाना कठिन है क़ि ये पूनम का चाँद तुझे बहकाता है या तू चाँद को देख बहक जाती है और सूरज की भोर वाली पहली किरण भी क्यों तुम्हे सिन्दूरी बिंदी जैसी लगती है.. स्वयं तो तुम निश्चित . दिखती नहीं पर एक. अनिश्चय की नमी तुम्हारी. आँख मे नज़र आ जाती है a त ©Parasram Arora प्रेम की चौखट पर......