जीवन भर निष्प्राण रहे ,अपना ये ही था भाग्य

जीवन  भर   निष्प्राण  रहे ,अपना  ये  ही  था भाग्य रहा।
क्यूँ  स्वयं की पीड़ा से डरकर मानव भय का पर्याय रहा।।
,
क्या   जीव   अकारण  जग में है,या भाव हमारे मन में है।
क्या भावों का अर्थ नहीं जग में,या अर्थ रहा केवल धन में।।
,
क्यूँ  अन्तर्मन  उद्वेलित  है, क्यूँ मानव मन ही शोषित है।
जिसनें  न जाना कर्म मर्म ,वो ही क्यूँ विजयी घोषित है।।
,
जब  अवसरवादी   होकर के ये मानव कुछ पा लेता है।
क्षण  भर  सही लेकिन अपने वो  दम्भो को गा लेता है।।
,
पर मौन वो मानव रहता है जो करता है पुरुसार्थ यहाँ।
पाकर वह अपनी आशा से,होता है सदा कृतार्थ यहाँ।।
,
सरल सुकोमल शांत भाव से दीप ज्यों तम से लड़ता है।
मानव  मन  भी  ये  दशा  देख कर धीरे धीरे बढ़ता है।।
,
झंझावातों का वेग सहन कर,नहीं डिगा जो पथ पर से।
लाख  वृष्टी  हो वाणों की पर,नहीं हिला जो रथ पर से।।
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मर्मज्ञ  वही  हो  पाता  है, वो  ही  विजयी  कहलाता है।
मर्मज्ञ  वही  हो  पाता  है, वो  ही  विजयी  कहलाता है।।
जीवन  भर   निष्प्राण  रहे ,अपना  ये  ही  था भाग्य रहा।
क्यूँ  स्वयं की पीड़ा से डरकर मानव भय का पर्याय रहा।।
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क्या   जीव   अकारण  जग में है,या भाव हमारे मन में है।
क्या भावों का अर्थ नहीं जग में,या अर्थ रहा केवल धन में।।
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क्यूँ  अन्तर्मन  उद्वेलित  है, क्यूँ मानव मन ही शोषित है।
जिसनें  न जाना कर्म मर्म ,वो ही क्यूँ विजयी घोषित है।।
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जब  अवसरवादी   होकर के ये मानव कुछ पा लेता है।
क्षण  भर  सही लेकिन अपने वो  दम्भो को गा लेता है।।
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पर मौन वो मानव रहता है जो करता है पुरुसार्थ यहाँ।
पाकर वह अपनी आशा से,होता है सदा कृतार्थ यहाँ।।
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सरल सुकोमल शांत भाव से दीप ज्यों तम से लड़ता है।
मानव  मन  भी  ये  दशा  देख कर धीरे धीरे बढ़ता है।।
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झंझावातों का वेग सहन कर,नहीं डिगा जो पथ पर से।
लाख  वृष्टी  हो वाणों की पर,नहीं हिला जो रथ पर से।।
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मर्मज्ञ  वही  हो  पाता  है, वो  ही  विजयी  कहलाता है।
मर्मज्ञ  वही  हो  पाता  है, वो  ही  विजयी  कहलाता है।।
rameshsingh8886

Ramesh Singh

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