ज़मीं से चिपक के रेंगते हैं जिन्हें ख़ुद पे शक़ है, नज़रें उठा के देख के मेरा ठिकाना ये फ़लक है! न मोहताज रिश्तों का हुआ कभी न ही मसर्रत का, बेफ़िक्र उड़ता हूँ आसमां में क्योंकि ये मेरा हक़ है! ©Shubhro K #azaad