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वो बस एक मुलाक़ात थी जो मुल्तवी रही एक तुम्हारी कमी

वो बस एक मुलाक़ात थी जो मुल्तवी रही
एक तुम्हारी कमी थी जो हमें खलती रही

वेदना की इक लौ सदा दिल में जलती रही
भला तुम ठहरे अर्जमंद, हिस्से हमारे बस गलती रही

दिन चढ़ता रहा शामें ढलती रही...और
जिन्दगी तन्हा अपनी रफ़्तार से चलती रही

रूबरू न सही, एक अरसे बाद जो बात हुई...लगा जैसे
दरमियां हमारे जमी, ग़लतफ़हमी की वो बर्फ पिघलती रही

ज़ाहिल है ये दिल बेचारा...भला कैसे समझता
गहराइयों में इसके, ख्वाहिशें अधूरी पलती रही

वाकिफ़ हैं हम, इस सफ़र की कोई मंजिल नहीं
लेकिन कमबख्त हक़ीक़त थी जो हमेशा हमें छलती रही

धूप छाँव तो मिजाज़-ए-ज़िन्दगी है यारों
खैर इम्तिहाँ दर इम्तिहाँ ये भी रंग बदलती रही

कभी आहटें आईं, लगा पुकार की तुमने 
उम्मीद-ओ-बीम की दीवार कभी ढही, गिरते गिरते कभी संभलती रही

अहसासों की डोर का थामे हैं बस एक छोर
'सरल' सी शख्सियत हमारी, हाथ अपने मलती रही

वो बस एक मुलाक़ात थी जो मुल्तवी रही
एक तुम्हारी कमी थी जो हमें खलती रही
एक तुम्हारी कमी थी जो हमें खलती रही   #NojotoQuote मुलाक़ात
#मुलाक़ात #nojotoquotes #poetry
वो बस एक मुलाक़ात थी जो मुल्तवी रही
एक तुम्हारी कमी थी जो हमें खलती रही

वेदना की इक लौ सदा दिल में जलती रही
भला तुम ठहरे अर्जमंद, हिस्से हमारे बस गलती रही

दिन चढ़ता रहा शामें ढलती रही...और
जिन्दगी तन्हा अपनी रफ़्तार से चलती रही

रूबरू न सही, एक अरसे बाद जो बात हुई...लगा जैसे
दरमियां हमारे जमी, ग़लतफ़हमी की वो बर्फ पिघलती रही

ज़ाहिल है ये दिल बेचारा...भला कैसे समझता
गहराइयों में इसके, ख्वाहिशें अधूरी पलती रही

वाकिफ़ हैं हम, इस सफ़र की कोई मंजिल नहीं
लेकिन कमबख्त हक़ीक़त थी जो हमेशा हमें छलती रही

धूप छाँव तो मिजाज़-ए-ज़िन्दगी है यारों
खैर इम्तिहाँ दर इम्तिहाँ ये भी रंग बदलती रही

कभी आहटें आईं, लगा पुकार की तुमने 
उम्मीद-ओ-बीम की दीवार कभी ढही, गिरते गिरते कभी संभलती रही

अहसासों की डोर का थामे हैं बस एक छोर
'सरल' सी शख्सियत हमारी, हाथ अपने मलती रही

वो बस एक मुलाक़ात थी जो मुल्तवी रही
एक तुम्हारी कमी थी जो हमें खलती रही
एक तुम्हारी कमी थी जो हमें खलती रही   #NojotoQuote मुलाक़ात
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