हवा का रुख ना पढ़ पाए, भितरघात ना सह पाए, था अभिमान बाजुओं पर, दरिया पार न कर पाए, बैठ गया किस करवट ऊँट, बात न क़ब्ल समझ पाए, कश्ती में थे छिद्र बहुत, साहिल तलक न बह पाए, शर्त जीतकर खुश नाविक, व्याकुल घटक न रह पाए, गौरव गाथा विपरीत राग, साधे बिन लक्ष्य स्वत: पाए, रहबर का साथ मिला गुंजन, जयघोष देश का कह पाए, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #जयघोष देश का कह पाए#