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क़ैद थी कब से मर्यादा की बेड़ियों में, रिहा हुई मु

 क़ैद थी कब से मर्यादा की बेड़ियों में,
रिहा हुई  मुद्दतो के बाद हूँ ,आज मैं आजाद हूँ ।
गिर गिर कर ही सीखूँगी सम्भलना,
सीख रही हूँ सिर उठा कर चलना,
चलते हुए कदमो की थाप हूँ,आज मैं आज़ाद हूँ।
मत समझना कि चुपचाप चलती रहूंगी,
ज़माने की रस्मो में ढलती रहूंगी,
सुनसान रास्तो की आवाज हूँ,आज मैं आज़ाद हूँ।
मत लगाना साँसो पर पहरा,
भर गया है ज़ख्म था जो गहरा,
आज मैं भी दुनिया में आबाद हूँ,आज मैं आज़ाद हूँ।।
                    पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #नारीकीकलमसे
#आज़ाद 
अब मैं आज़ाद हूँ
pragyanshatrey9859

poonam atrey

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#नारीकीकलमसे #आज़ाद अब मैं आज़ाद हूँ #कविता

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