मेरे सिर के आसमां ने रंग अपना कुछ यूँ दिखाया है,लगता है जैसे उस पर वैश्विक ताप का साया है। पल में बदला है मेरे संसार का मौसम,कार्बन सा असर लोगों पर छाया है।। छवि उज्ज्वल घर से बाहर है जिनकी,कुछ उतनी ही अंदर धूमिल भी है। खुद को जो ब्रह्म समझते हैं,उनके कृत्यों में प्रताड़ना भी शामिल है।। दूजों को ज्ञान दिया हर पल,उस ज्ञान को अभिमान समझते हैं। सबको पालन का ध्येय दिया,खुद उसको कुचलते फिरते हैं।। देना सद्बुद्धि तनिक उनको,खुद अपना संसार बिखेरे हैं। जिन जड़ों को सींचा चार पीढ़ी,उनको ही आज उजाड़े हैं।। गृह सर्वेसर्वा