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तलब ------ रात को महताब की, आँखों को ख़्वाब की मन

तलब
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रात को महताब की, आँखों को ख़्वाब की मन को जज़्बात की, दिल को चाहत की

एक और मुलाक़ात की, अरमान को हालात की तन्हाई को महफ़िल की, नदी को साहिल की

ख़्वाहिशों को हक़ीकत की तलब क्यों होती है हर तलब पूरी हो भी जाए तो फिर, कोई और तलब क्यों होती है ?

मनीष राज

©Manish Raaj
  #तलब