एक उधार की ज़िंदगी वक़्त जाया करने में कट गई मौत आयी तो,वो भी हिस्सो में बट गईं रेत ही तो है उड़ रही है हवा के साथ धूप निकली ही थी के आंधिया भी छ्ठ गई विनीत कुमार मित्तल कौन जाने