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पहले दूसरे तीसरे में गिनती होने लगी है अब प्रेम की

पहले दूसरे तीसरे में गिनती होने लगी है अब प्रेम की
नाम बदनाम करने लगे हैं सुख की चाह में प्रेम का सखी

वैभव विराट की चाह दिखाने लगी जीवन साथी में खोट
अब निज सम्मान गरिमा व गर्व का स्वयं क़त्ल करते हैं लोग

ठोकरों में रहने लगे अब सहृदयी  संवेदनाओं के धनी हैं जो
श्याम सुध लो उनकी धर्म पे टिके हैं जो सूली पे टंगे हैं क्यों
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla
  गिनती

गिनती #कविता

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