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प्रेम करना और प्रेम को चरितार्थ करना दोनों ही दो स

प्रेम करना और प्रेम को चरितार्थ करना दोनों ही दो सीमाओं के असीम बिंदु है, 
कृष्ण ये भी  बताते की राधा का प्रेम त्याग था, रुक्मिणी का प्रेम अधिकार था, सुभद्रा का प्रेम यथार्थ था, प्रथम स्वास से अंतिम निश्वास तक स्वंय का प्रेम, इसके बीच में में योगी और सृष्टि का आकर्षण प्रेम कहलाता है।
माता का प्रेम वात्सल्य, भाई बहन का स्नेह , पिता का अधिकार, और पति पत्नी का प्रेम रति द्वारा प्रदर्शित है। लेकिन यह आकर्षण और माया के रूप है।।

सिद्धार्थ वैद्य wwww
प्रेम करना और प्रेम को चरितार्थ करना दोनों ही दो सीमाओं के असीम बिंदु है, 
कृष्ण ये भी  बताते की राधा का प्रेम त्याग था, रुक्मिणी का प्रेम अधिकार था, सुभद्रा का प्रेम यथार्थ था, प्रथम स्वास से अंतिम निश्वास तक स्वंय का प्रेम, इसके बीच में में योगी और सृष्टि का आकर्षण प्रेम कहलाता है।
माता का प्रेम वात्सल्य, भाई बहन का स्नेह , पिता का अधिकार, और पति पत्नी का प्रेम रति द्वारा प्रदर्शित है। लेकिन यह आकर्षण और माया के रूप है।।

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