मैं ठहरा रहा इश्तियाक़ में उनके फ़िर यूँ हुआ के कुछ देर हो गई सहर कि रौशनी हुई इंतज़ार में दुनिया मगर मेरी अंधेर हो गई प्यासा रहा ये दिल बियाबान हो गया अक़्द का घूंट पीकर वो सेर हो गई आई न रास उनको उनकी आज़ादी सय्याद के चक्कर में अहेर हो गई ताज्जुब है मुझे वो सहमी हुई लड़की आख़िर किस क़दर इतनी दिलेर हो गई इश्तियाक़ - तमन्ना बियाबान - रेगिस्तान अक़्द - शादी सय्याद - शिकारी अहेर - शिकार