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एहसास --------- एक उम्र गुज़र गई ख़ुद को एक मुक़ा

एहसास
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एक उम्र गुज़र गई ख़ुद को एक मुक़ाम पर लाने में कई हिस्सों में बँट गए हम रिश्तों को निभाने में

सितम इतने सहे, ख़ुशी की जगह दर्द नज़र आने लगा है मुस्कुराने में रिश्तों की रंजिश और ज़िंदगी की बंदिश में प्यार जैसे फ़ना हो गया है इस ज़माने में

हालात ऐसे हुए की ख़ुद को भुला दिया नाम कमाने में चाँद की रौशनी में नज़रअंदाज़ कर दिया सितारों को अंजाने में !

क़ाश पनाह मिले इस मन को किसी के दिल में, बहुत तन्हा रह लिया आशियाने में ग़ौर से देखो तो शम्मा और परवाने दोनों ही जलते हैं एक दुसरे को आज़माने में

क़द्र नहीं है ये जान कर भी न जाने क्यूँ करता हूँ क़ोशिश जज़्बातों को समझाने में ये मेरे बस में नहीं कि नज़ारा हमेशा एक सा रहे नज़रों के शामियाने में

मनीष राज

©Manish Raaj
  #एहसास