मैं वो कश्ती हूं जिसे कोई किनारा न मिला नज़रों के सामने थी वो लेकिन सहारा न मिला बादिये में पड़े किसी अब्तर पंछी की तरह आँखोँ में अरमान तो मिले, वो बादल न मिला हमें दरख़्तों में भी धूप मिली छाया न मिली हमें तवस्सुम तो मिला, वो बे-नजीर न मिला हमने उसे शगुफ्ता ही पाया जब भी देखा जन्न्त की तरह ऐसा, कहीं नज़ारा न मिला तेरी हर बात हर याद को अब मेरी सोहबत में रहना होगा , कि शख्स तेरे जैसा कोई ,इतना हमें प्यारा न मिला - विवेक 🙂 Recreated nd final version 😶