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मैं वो कश्ती हूं जिसे कोई किनारा न मिला नज़रों के स

मैं वो कश्ती हूं जिसे कोई किनारा न मिला
नज़रों के सामने थी वो लेकिन सहारा न मिला
बादिये में पड़े किसी अब्तर पंछी की तरह
आँखोँ में अरमान तो मिले, वो बादल न मिला
हमें दरख़्तों में भी धूप मिली छाया न मिली
हमें तवस्सुम तो मिला, वो बे-नजीर न मिला
हमने उसे शगुफ्ता ही पाया जब भी देखा
जन्न्त की तरह ऐसा, कहीं नज़ारा न मिला
तेरी हर बात हर याद को अब मेरी सोहबत में रहना होगा ,
कि शख्स तेरे जैसा कोई ,इतना हमें प्यारा न मिला
                    - विवेक 🙂 Recreated nd final version 😶
मैं वो कश्ती हूं जिसे कोई किनारा न मिला
नज़रों के सामने थी वो लेकिन सहारा न मिला
बादिये में पड़े किसी अब्तर पंछी की तरह
आँखोँ में अरमान तो मिले, वो बादल न मिला
हमें दरख़्तों में भी धूप मिली छाया न मिली
हमें तवस्सुम तो मिला, वो बे-नजीर न मिला
हमने उसे शगुफ्ता ही पाया जब भी देखा
जन्न्त की तरह ऐसा, कहीं नज़ारा न मिला
तेरी हर बात हर याद को अब मेरी सोहबत में रहना होगा ,
कि शख्स तेरे जैसा कोई ,इतना हमें प्यारा न मिला
                    - विवेक 🙂 Recreated nd final version 😶
vivekverma0197

Vivek Verma

New Creator