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कू-ब-कू कू-ब-कू फैली है जहां भर में रंग-ओ-रानाइया

कू-ब-कू

कू-ब-कू फैली है जहां भर में रंग-ओ-रानाइयाँ,
स्याह-ओ-सफेद हमको फिर भी अच्छा लगता है । 

कितने सुर, कितनी आवाज़ें, कानों में हैं आती, 
खामोश रहके कहना सुनना अच्छा लगता है । 

नए मुल्क, नए शहर, कितना कुछ है देखने को, 
दरख़्त के साये में खामोश बैठना अच्छा लगता है । 

खुली आंखों ने न पूछो कितने मंज़र दिखलाये हैं,
बंद आंखों से दीद-ए-हुस्न-ए-यार अच्छा लगता है । 

तूफानों ने न जाने कितनी नदियों के रूख़ बदले,
हमें अब भी ’सागर’ पे वह समीर अच्छा लगता है ।

©Sameer Kaul 'Sagar' #Nature #urdu #poetry #ghazal #love #Judaai #pyaar #alone  #sameerkaulsagar
कू-ब-कू

कू-ब-कू फैली है जहां भर में रंग-ओ-रानाइयाँ,
स्याह-ओ-सफेद हमको फिर भी अच्छा लगता है । 

कितने सुर, कितनी आवाज़ें, कानों में हैं आती, 
खामोश रहके कहना सुनना अच्छा लगता है । 

नए मुल्क, नए शहर, कितना कुछ है देखने को, 
दरख़्त के साये में खामोश बैठना अच्छा लगता है । 

खुली आंखों ने न पूछो कितने मंज़र दिखलाये हैं,
बंद आंखों से दीद-ए-हुस्न-ए-यार अच्छा लगता है । 

तूफानों ने न जाने कितनी नदियों के रूख़ बदले,
हमें अब भी ’सागर’ पे वह समीर अच्छा लगता है ।

©Sameer Kaul 'Sagar' #Nature #urdu #poetry #ghazal #love #Judaai #pyaar #alone  #sameerkaulsagar