इज़हार नज़र का तीर तू मेरे जिगर के पार कर दे। करम मुझपे भी मेरी जाँ ज़रा एक बार कर दे। बरस जा प्यार बनके मुझपे मैं प्यासा बहुत हूँ- बरसों से चमन ग़मगीन है गुलज़ार कर दे। भले इकरार कर या तू मुझे इंकार कर दे। मेरी रुसवाई तू जानां सरेबाज़ार कर दे। आशिक पर इनायत इक दफ़ा तो कर दे अपने- बरसों से चमन ग़मगीन है गुलज़ार कर दे। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #गलज़ार_कर_दे