सभ्यताओं के विवेक की ग्रंथिया आर्द्र हुई है....... पश्चाताप की गंगा व्यर्थ मे बह रही.... हमारे आचरण लहू लुहान हो चुके और नैतिकता अपने सिहासन से पद्चुत होकर किसो अंधी खाई मे गिर कर अंतिम साँसे ले रही... विवेक की ग्रंथिया........