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प्रेम जितनी पूर्ण तृप्ति है ..अधूरा प्रेम उतनी ही

प्रेम जितनी पूर्ण तृप्ति है ..अधूरा प्रेम उतनी ही गहरी तृष्णा ।

एक ऐसी तृष्णा जो आपको जलाती भी रहेगी और राख भी नही होने देगी। आप कहीं होकर भी नगण्य रह जाओगे
आपका शरीर तो बंधनों में बंध जाएगा, लेकिन आपकी आत्मा इस तृष्णा से मुक्त नही हो पाएगी
आप सेवन कर रहे होंगे पर रस नही आएगा
आप भोग में डूबोगे पर संतुष्टि नही मिलेगी

एक अपराधबोध सा आप पर हावी रहेगा 
आप प्रेम की स्मृतियों को अपने भविष्य में सजों कर आज में जीवित रहने का संघर्ष  रहे होंगे
और "काश" शब्द आपके भूत, भविष्य और वर्तमान से हमेशा के लिए जुड़ जाएगा ।

हर संबंध एक छलावा सा प्रतीत होगा और किसी का भी आपके निकट आने का प्रयास उसे आप से और दूर ले जाएगा । 

किसी का कोई भी प्रयत्न तपती रेत पर गिरी बूंद के समान होगा, प्यास बुझने के बजाए भड़क उठेगी ।
तृष्णा को तपिश से दबाने का प्रयास कुछ ऐसा भयंकर रूप लेगा कि आप सिर्फ एक दर्शनार्थी से ज्यादा कुछ नही रह जाओगे और आपका सब कुछ इस अग्न में जल कर भस्म हो जाएगा ।
इस द्वंद के बाद भी आप को उस तृप्ति का अहसास नही होगा, जिसके लिए ये सम्पूर्ण त्याग किया गया ।

क्योंकि आपका हर तत्व तो नष्ट हो जाएगा पर ये तृष्णा समाप्त नही होगी, क्योंकि ये सबसे पवित्र भाव प्रेम की तृष्णा है ये विरह का वो उच्चतम रूप है जिसने राधा को श्याम कर दिया और सीता को राम कर दिया।
 
अधूरे प्रेम के पूर्ण होने की लालसा में ये विरह रूपी तृष्णा आपकी आत्मा में ऐसे ही प्रज्जलित रहेगी और अनादि काल तक के लिए आपकी आत्मा जीवन से मुक्त होकर भी इस कालचक्र से मुक्त होने को तड़पती रहेगी...तड़पती रहेगी ।

©rahul shiv
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