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बाहर ही नहीं भीतर भी है अन्यमनस्कता की शुष्क शीत

बाहर ही नहीं
भीतर भी है 
अन्यमनस्कता की शुष्क शीत , 
उधर मौन लपेटा है फिलहाल 
कभी किसी रोज़
कुनकुनी धूप बन चमका कोई विचार
तो उतार दूँगी मौन के लबादे, 
शब्द पहनकर निखरूंगी
विचारों की धूप में 
पूर्णतया बिखरूंगी

©बुशरा तबस्सुम
  #शीत