रात भर पहरा देती रही यादों की परछाई, कब मैं सोया, कब जागा, कब मेरी आंख भर आई, कब किसी के तसस्वर को पलकों में सजाए, रात भर जागता रहा, ना जाने कब सुबह निकल आई, मैं उन्हें छोड़ता नहीं था या थी वो मुझे बांधे, इसी कशमकश में थे, एक दूसरे को बांधे, बड़ा खूबसूरत था यह दर्द का यह नगमा, लेटे रहे दोनों हाथों से सीने को दबाए। ©Harvinder Ahuja #यादों की परिछाई