बचपन की सीढ़ी जो अभी-अभी मैंने पार करी है देखो अब कैसी छत पर निगाहें मेरी आ पड़ी है, किताबों की दुनिया में खोई थी जब तलक, बस तब तलक ही, दुनिया आसान शब्द में महफूज पड़ी थी मेरी। अब देखो कठिन से कठिन घड़ी भी साझेदारी की चौखट पर खड़ी मैं, बड़ी आसानी से झेल लेती हूं। धूप छांव अब महज दिन के ही नहीं, फकत सारी परिस्थितियों के भी मै बड़े विस्तार से अब महसूस कर रही हूं। #लड़कपन से युवापीढ़ी की ओर के खयालात। .. ©smriti ki kalam se