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वो एक-दिल एक-जान वही सुरत वही चाल फिर भी वो मुझे क

वो एक-दिल एक-जान वही सुरत वही चाल
फिर भी वो मुझे कुछ अनजानी लगी।
वो मिली तो है साबूत,मगर रुह कुछ छानी लगी।
सरे-राह जो बेझिझक लग जाती थी गले,
आज उसेही हाथ मिलानेको परेशानी लगी।
मुझपर यकीन का तो हश्र ही कुछ और है,
रो-रो सुनाई आपबीती और उसे कहानी लगी।
ठोकरसे गीरा "उठ जाता" तो अच्छा होता,
बेहया उठके खडा होना मुझे कुछ बेमानी लगी।
जिल्लतसे जीना लिखा हो शायद किस्मतमे,
उसके हाथों जहर की शिशी भी पानी लगी।
उसकी बेनियाजी से आँखोंमे जो खुन आया,
देरमे समझा के वो चोट गहरी अंदरुनी लगी।
आदत लगाके छोड देना कोई बडी बात कहाँ,
ये आदत उन अमीरोंकी बडी खानदानी लगी।
Ct.JackOcean

©Jack Sparrow
  #Part1 bekadar
jacksparrow6877

Jack Sparrow

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