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कलम से कलम लड़ गई, कागज़ राह तकता रहा। आपस में बात

कलम से कलम लड़ गई,
कागज़ राह तकता रहा। 
आपस  में बात अड़ गई,
मुद्दा बीच मे लटका रहा।

          न दलीलें हुईं न ही बयान, 
          असत शब्द  भटका रहा।
          तारीख़ पे तारीख़ चढ़ गई, 
          मामला बस, अटका रहा। 

आँख से आँख भिड़ गई,
मनस उँगली चटका रहा।
न दुआ हुई न ही सलाम,  
तमस खड़ा  मटका रहा। 

          न हवा चली और न आँधी, 
          चर धूल फांकता रहा।
          भौंह से भौंह अस चिढ़ गई, 
          सत खेद छानता रहा। 

माथे चटक लकीरें मढ गई, 
सांसे बख़त दर खींचता रहा। 
सुईं के आगे सुईं बढ़ गईं,
फ़ैसला दरीचे झांकता रहा।

©ALOK Sharma...✍️ फ़ैसला दरीचे झांकता रहा।

कलम से #कलम लड़ गई,
कागज़ राह तकता रहा। 
आपस  में बात अड़ गई,
मुद्दा बीच मे लटका रहा।

          न दलीलें हुईं न ही बयान,
कलम से कलम लड़ गई,
कागज़ राह तकता रहा। 
आपस  में बात अड़ गई,
मुद्दा बीच मे लटका रहा।

          न दलीलें हुईं न ही बयान, 
          असत शब्द  भटका रहा।
          तारीख़ पे तारीख़ चढ़ गई, 
          मामला बस, अटका रहा। 

आँख से आँख भिड़ गई,
मनस उँगली चटका रहा।
न दुआ हुई न ही सलाम,  
तमस खड़ा  मटका रहा। 

          न हवा चली और न आँधी, 
          चर धूल फांकता रहा।
          भौंह से भौंह अस चिढ़ गई, 
          सत खेद छानता रहा। 

माथे चटक लकीरें मढ गई, 
सांसे बख़त दर खींचता रहा। 
सुईं के आगे सुईं बढ़ गईं,
फ़ैसला दरीचे झांकता रहा।

©ALOK Sharma...✍️ फ़ैसला दरीचे झांकता रहा।

कलम से #कलम लड़ गई,
कागज़ राह तकता रहा। 
आपस  में बात अड़ गई,
मुद्दा बीच मे लटका रहा।

          न दलीलें हुईं न ही बयान,
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ALOK Sharma

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