शक्ति, चेतना, बोध सब लौट आता है, पथ प्रदर्शित होता है, दीप जल जाता है। ©Krishna Awasthi फिर रुक गया हूँ फिर दिये की लौ बुझ गई है। आँखों से सीमान्त धुँधला रहा है। सम्पूर्ण शक्ति जा रही है, इति की अनुभूति, हर क्षण मिटता वर्तमान, विजन मे शोर मचा रही है। चेतना सो गयी है, फिर हाथ काँप रहे है,