जाने क्या-क्या दिखाएगी हमें हमारी दीवानगी ये दीवानापन हमसे अब छूटेगा कहाँ। दिल को सुकून मिलेगा जाने कैसे अभी तो ये ख़ुद खोया है जाने कहाँ। टूटकर भी जुड़ा है ये जाने कैसे जुड़ने की हर बार मिलती कहाँ। मोहब्बत भरी है इसमें कूट कूटकर इसे फ़िर भी कोई समझा कहाँ। जो जैसा है वो रहेगा वैसा ही कोई किसी के लिए बदलता है कहाँ। // वज़्ह-ए-वाबस्तगी // निकल तो पड़े हैं ढूॅंढने तुम्हें, पर ढूॅंढें कहाॅं शब होने को है, घरौंदा तेरा, अब पूछे कहाॅं। मुसाफ़िर बन मिले, कुछ पल का साथ रहा रास्ते हो गए जुदा, अब जाये तो जाये कहाॅं।