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पता न था की ये आखरी मुलाकात होगी हमारी, पता न था क

पता न था की ये आखरी मुलाकात होगी हमारी,
पता न था की अब नही देखूंगा वो मुस्कान तुम्हारी,
पर वो पल तेरे साथ जो आखिर में बिताए थे उस रात,
जहन में बसे है मेरे अब तक, याद है एक एक बात ।

वो तुझे उस रात स्टेशन में छोड़ने जाना,
तुझे प्लेटफार्म में आखरी बार देखना,
अब भी हसीन सपना लगता है,
तेरा वो चलती ट्रेन से हाथ निकालकर मुस्कुराना,
मुझे कितना ज्यादा अपना लगता है।

न जाने कितनी बातें करनी थीं उस रोज़ तुमसे,
पर वक्त के तकाज़े के कारण कुछ कह न पाया,
सुनता रहा तुम्हारी बातें सारी, अपनी कुछ सुना न पाया,
चाहता तो बोल सकता था, पर हर बार यही ख्याल मन में आया,
की आवाज तुम्हारी बस सुनता रहूं, बस इसीलिए कुछ कह न पाया।

अब भी याद आती है तुम्हारी, पर अब मुस्कुराता नहीं हुं ,
आंसु अपने छुपा लेता हुं सबसे, किसी को यह दिखाता नहीं हुं,
हर पल तुम्हे याद करता हुं, पर किसी को जताता नहीं हुं,
कितनी चाहत है मुझे तेरी यह अब किसी को बताता नही हुं।

बस इक यहीं मलाल है दिल में,
की गर उस रोज़ तुम गले लगा लेती मुझको,
वो शाम एक हसीन पल और दे जाती,
जी लेता ना जाने कितनी खुशियां उस पल,
पास अगर तुम एक बार आ जाती। 

पास तुम आ जाती तो शायद लिपट जाता तुम्हारी बाहों में ,
और अश्कों का समंदर शायद फट पड़ता,
और इस हसीन एहसास को संजो लेता में ,
पर अफ़सोस ये हो न सका, और तुम चली गई हाथ दिखाते, मुस्कुराते, 
तो बस वहीं मुस्कान समेटे कांट रहा हुं अब मैं ये बेरंग जिंदगी ।

©Siddharth
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