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क्या पाया चालाकी करके, ख़ुद को भी एकाकी करके, क

क्या पाया  चालाकी करके, 
ख़ुद को भी एकाकी करके,

किया खिलाफ़त वादा करके, 
अपनी सोच  सियासी करके,

जनता के पैसों को खुद पर, 
खर्च किया अय्याशी करके,

खाली हाथ गया दुनिया से,
सचमुच  नाइंसाफी  करके,

गिरेबान  में  झाँको  अपने, 
देख न ताका-झाँकी करके, 

रखते हैं विकल्प जीवन में, 
कहते सब  हालाँकि करके,

मुदित न हो मन मेरा गुंजन, 
मनमाफ़िक गुस्ताख़ी करके,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     कलकत्ता प○बंगाल

©Shashi Bhushan Mishra #एकाकी करके#
क्या पाया  चालाकी करके, 
ख़ुद को भी एकाकी करके,

किया खिलाफ़त वादा करके, 
अपनी सोच  सियासी करके,

जनता के पैसों को खुद पर, 
खर्च किया अय्याशी करके,

खाली हाथ गया दुनिया से,
सचमुच  नाइंसाफी  करके,

गिरेबान  में  झाँको  अपने, 
देख न ताका-झाँकी करके, 

रखते हैं विकल्प जीवन में, 
कहते सब  हालाँकि करके,

मुदित न हो मन मेरा गुंजन, 
मनमाफ़िक गुस्ताख़ी करके,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     कलकत्ता प○बंगाल

©Shashi Bhushan Mishra #एकाकी करके#