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हर्फ़ हर्फ़ से सीखा है हमनें , सर उठाकर चलना, गुम

हर्फ़ हर्फ़  से सीखा है हमनें  ,  सर उठाकर चलना,
गुमनामी के अँधेरों से , क़लम के ज़रिए निकलना,

एक   बुलन्दी  के  आज   हम   भी   हक़दार   हैं,
अब लड़खड़ाती नही नाव,हाथ मे क़लम की पतवार है,

हर दर्द हर उलझन से अब ,निपटना सीख लिया है,
अपने हिस्से का आसमाँ अब झपटना सीख लिया है,

उस अंबर से  भी   ऊँची , अब   परवाज़  है  हमारी,
बन्द   मुट्ठी   में   सारी   दुनिया ,  आज   है   हमारी,

छलाँग लगा कर बुलन्दी तक ,उछलना सीख लिया है,
साथ पाकर   क़लम का, सँभलना सीख लिया है।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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