#lockdown diary #self motivation मेरी बहन मुझसे पूछती है, आपका दिमाग ख़राब नहीं होता, रोना नहीं आता। अभी उसकी उम्र 18 है, धोखा शब्द उसके शब्दकोश में नया नया प्रवेश हुआ है। जिस इंसान को 11 साल के उम्र से अकेले रहने की आदत हो, वो अंदर अंदर रोता है, बाथरूम में छिप कर रोता है, बहुत बार तो वो रोना चाह कर भी रो नहीं सकता। जिस इंसान को जीवन में धोखा ही धोखा मिला हो, अकेलापन ही अकेलापन, तनाव ही तनाव, भावनात्मक रूप से वो इतना मजबूत हो जाता है कि उसे आस पास फ़िर दुःख नहीं दिखता। उसे फ़िर बुराई नहीं अच्छाई दिखती है, मैं इतना प्यार बांटा हूं, इतना लोगों का ख्याल रखा हूं, ऊपर वाले ने इतनी अच्छी वाक्शैली दी है कि लोग अक्सर मेरे साथ वक़्त गुजारना चाहते हैं। कुछ ज्ञान के, कुछ धन के, कुछ बुद्धि के स्वार्थ से, कुछ शायद मेरे व्यवहार से। मैं ईश्वर का रोज धन्यवाद् देता हूं कि मुझे ईश्वर ने दाता बनाया है, मुझे उनके अलावा किसी से मांगने की जल्दी ज़रूरत नहीं पड़ती। महादेव का साया है, वही सिर्फ़ अपने हैं, ये नाते, रिश्ते,दोस्ती,प्यार सब एक छलावा है, मोह माया है, कुछ ख़ुद टूटेंगे, कुछ वक़्त तोड़ता है, कुछ मृत्यु। हम नाटक के पात्र मात्र हैं, भावावेश में, मोहवश अगर हम इस दुनिया दारी में पड़ भी जाते हैं तो हम सिर्फ़ अपना रोल अदा कर सकते हैं, तो कोशिश करें कि अभिनय इस कदर हो कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाएं। रोना तो मुझे रोज आता है बहन, बहुत आता है, और पिछले 17-18 सालों से आ रहा। मैं अगर लिखूं अपने दुख तो तुम्हें भी रोना आ जाए और मेरा जन्म हंसने- हंसाने को हुआ है। रोने- रुलाने के लिए नहीं।मैं तो lockdown में रोज तड़पा हूं प्रेम को, साथ को, दोस्त को। पर मेरा दुर्भाग्य या सौभाग्य कि मुझे स्वयं से सब सम्हालना पड़ा षडयंत्र भी, दुःख भी, दर्द भी, सुख भी और मैं और मजबूत हो कर निकला कि अब मुझे दुनिया की कोई ताकत कमज़ोर नहीं कर सकती। मेरा जन्म नेतृत्व करने को हुआ है, रोने, कमज़ोर पड़ने को नहीं।