रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां, सिलवटों की लहरों मे, डूबकर कराह रही थीं, और..नैनों की कोरों से, बहे उसके दो मोती, तकिए के गिलाफ पर पड़े, अपने घर का, पता पूछ रहे थें उससे, उसकी आँखों पर सजी, काजल की काली सरिता, पलकों के बंध तोड़, उम्मीद की बहती, बाढ़ मे बहकर, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सावन_की_साँझ रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां,