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जन्नत की तमन्ना रही, पर क़ुदरत का डर न रहा, ऐ दुख

जन्नत की तमन्ना रही, पर क़ुदरत का डर न रहा, 
ऐ दुख़्तर, तेरे हंसने खेलने लायक ये शहर न रहा! 

हर तरह होशमंद तू, बस मोहब्बत में बेबस न हो, 
कांटे रह गये इश्क़ में, एहसासों का वो डगर न रहा! 

भूल जा तू सावन के झूलों में झूल जाया करती थी,
तेरी अस्मत संभाले, न वो झूला रहा, न वो शजर रहा! 

राख़ कर देती थी कहर बन के बस एक नज़र तेरी! 
बोल बेटी, क्या तेरी भी आह में वो असर न रहा?

©Shubhro K
  #keralastory #lovejihad