विश्वास की पतंग उड़े उम्मीदो की डोर जुड़े, मिठास रहे गुड़ सी रिश्तो की और मुडे,, सब संग हो अपने, एक रंग हो अपने, कटे ना पतंग अपनी ऐसे ढंग हो अपने,,, नभ का माथा चूमे, खुशी में अंबर झूमें, ईर्ष्या का मांझा टूटे, प्रेम के माँझे में लुमे,, एक कटे दूसरी मिले, जिंदगी को ऐसे जिले, उची उड़ान सपनो की हकीकत आ कर ले,, तिल्ली में मिला गुड़, मिठास से रहा है जुड़, मिठास जीवन की बड़ी, निराशा से आशा में मूड,, सूर्य की लालिमा छाये, खिचड़ी बना खिलाये संक्रांति पल दे उत्सव के, खुशियाँ नित पास आये,,, ✍️नितिन कुवादे... ©Nitin Kuvade sankranti