White ज़िंदगी मौत की निशानी है..! कब मिटे वक़्त ने ही जानी है..! कद्र होती नहीं गरीबों की महफ़िलों की यही कहानी है..! नामवर ही तो सर का ताज हुए जिनकी दुनिया हुई दिवानी है..! गर बुढ़ापे को दर-ब-दर करदे ख़ाक जज्ब-ओ-जुनु जवानी है..! मुस्कुराहट खिले तो कैसे खिले बे-ज़रों का नसीब पानी है..! कौन किसकी सुने जमाने में सबको अपनी ही खुद सुनानी है..! ©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #कच्ची ग़ज़ल