आईने के सामने. ज़ब भी मेरी आँख खुलती है मैं अपना प्रतिबिम्ब देख सकता था. पर जैसे ही मैं अपनी आँख बंद करता हूँ मेरी रूह मेरे भीतर से बाहर आकर अपनी आकृति का ज़ायज़ा लेने आईने के सामने आ जाती थी और ये रहस्य मुझे मेरे आईने ने मुझे मेरे कानो मे फुसफुसाते हुए बताया था काश मेरी बंद आँखों का ये सच मेरी. खुली आँखे देख पाती तों निश्चित ही मैं उस आईने की बात पर भरोसा भी कर लेता ©Parasram Arora बंद आँख खुली आँख