ठुकरा के मेरी मोहब्बत को तूने, दिया अपने हाथों से ज़ख़्म-ए-जिगर।। फ़िर भी हमारी तबी'अत तो देखो, बना कर रखा तुझ को लख़्त-ए-जिगर।। ना जाने कि क्या है सोहबत में तेरी, कि भूले हम सारे है सोज़-ए-जिगर।। ये तेरी मोहब्बत का ही असर है, कि शायर बना एक ख़ूनीं-जिगर।। करना तो चाहते अदावत है तुझसे, करे भी तो क्या तू है ख़ून-ए-जिगर।। 96/365 #cinemagraph #365days365quotes #bestyqhindiquotes #writingresolution #aprichit #प्यार #ग़ज़ल #मोहब्बत ज़ख़्म-ए-जिगर - दिल की चोट तबी'अत - स्वभाव लख़्त-ए-जिगर - जिगर का टुकड़ा सोहबत - संगति