मेरे मन! ये किसकी धुन में धुन लिए तूने भी ख़्वाब, तू ओढ़े बैठा घटा यादों की, देता वो घटा सा जवाब। उसके लोग-ज़माने का राग देखूँ, कि तेरा हाल सुनूँ, तू बाँट देता है ख़ुशी अपनी,देता वो बँटा सा हिसाब। वो बेवफ़ा तो नहीं, फिर भी करता नहीं तुझसे वफ़ा, तू छाँट देता जज़्बात, और देता वो छँटा सा निसाब। कोई बात नहीं, एहसास काफ़ी तेरी ज़िंदगी के लिए, तू ही पाट लेना दूरियाँ, चाहे देता वो पटा सा ग़ुराब। तू 'धुन' का मन है, उसे भी समझना तू मुझ जैसा ही, तू डाँट लेना मुझे,उसे देने दो जो देता डटा सा इताब। -संगीता पाटीदार 'धुन' 👉 निसाब- Syllabus, ग़ुराब- Pride, इताब- Anger Rest Zone 'काव्योगिता', रस-लंकार प्रतियोगिता, पड़ाव - 2 अलंकार- अनुप्रास, यमक रस- शांत रस, करुण रस, विप्रलंभ शृंगार