गुलाब दूँगा ये सोचा था मैंने पर सोचो गुलाब शर्म के मारे सिमट न जाएगा तुम्हारे रूप पे कविता भी है कहाँ मुमकिन कि इतना हुस्न कहाँ शब्दों में समाएगा ©Ghumnam Gautam #ghumnamgautam #गुलाब #कविता #हुस्न