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कि तुझसे निकलकर तुझमें फसी हूं कि इन चांद रातों की

कि तुझसे निकलकर तुझमें फसी हूं
कि इन चांद रातों की मैं रोशनी हूं..

ना है फिकर तुझे अभी मेरी
कि होगी एक दिन बेखबर मेरी..

कि रास्ते मैं हूं या मंजिल मैं फसी हूं
सुन बेखबर मैं अभी सफ़र मैं हूं...

राह की वो मंजिल हूं
तिनके तिनके से बुनती अपना घर हूं...

उस नाव की वो पटवार हूं
सुन बेखबर अभी मै शांत हुं...

कि हो जा खुश अभी तेरा समय है
जान ले लेकिन कल मेरा भी है...

कि उन मंजिल की मैं मुसाफ़िर हूं
रास्ते तक ख़बर है जिन्हे मेरी..

कि तुझसे निकलकर तुझमें फसी हूं..🖋️

©Sonika pal
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