कुछ तो ग़लती रही होगी हमारे बुजुर्गों की , ये चमन पर यू ही तो दाग़ नहीं बिखरे होते..! कब तक ख़ुरेडोंगे वतन के इस दाग़ को , अच्छा होता कि महोब्बत से धोये जाते..! कोई रंजिश नही पर इक शिकवा है बुजुर्गों से, हाथ काटने से अच्छा होता की हाथ बढ़ाये होते..! कह्ते है कि मुहोब्बत हर मर्ज की दवा है, काश इस ज़ख़्म-ए-दाग़ पर भी आज़माये होते..! सुने थे कई वाक़ये-आज़ादी के, काश अब इसे फ़िरसे सबको सुनाया जाये..! इक घुटन सी महसूस हो रही है *अमन* अब ये फ़िज़ाओ में , खुली हवाओ को भी अब बुलाया जाये..! इमरान पठाण *अमन* #खुली हवा - नये विचारो को ©imran pathan #IndiaLoveNojoto