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यूँ भी ख़िज़ाँ का रूप सुहाना लगा मुझे हर फ

यूँ  भी  ख़िज़ाँ  का  रूप  सुहाना  लगा  मुझे
हर  फूल , फ़स्ल - ए - गुल  में  पुराना  लगा  मुझे
मैं  क्या  किसी  पे  संग  उठाने  की  सोचता
अपना  ही  जिस्म आईना - ख़ाना  लगा  मुझे
ऐ  दोस्त , झूठ  आम  था , दुनिया  में  इस  क़दर
तूने  भी  सच  कहा , तो  फ़साना  लगा  मुझे
अब  उसको  खो  रहा  हूँ , बड़े  इश्तियाक़  से

©विवेक तिवारी
  #अच्छालगताहै #उसेभुलानाअच्छा