रौशनी को कुचल रहे है लोग वक़्त से पहले ढल रहे है लोग ऊँचे कद और तंग दरवाज़े कितना झुक कर निकल रहे है. लोग जिस्म साबित दिखाई देते है अपने अंदर पिघल रहे है लोग एक अंधी सुरंग क़े भीतर एक मुद्द्त से चल रहे है लोग पास आकर भी इन सलीबों क़े कितने खुश है उछल रहे है लोग # कितने खुश है... उछल ररहे है लोग ( ओशो टाइम्स से उधृत )