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मन चंचल कभी ना थके जन्म जन्म भटकाए तन थक जाए मन ना

मन चंचल कभी ना थके
जन्म जन्म भटकाए
तन थक जाए मन ना थके
अंत समय पछताए

तेरी करनी तुझे है भरनी
पाप पुण्य जो भी कमाए
काल चक्र चलता रहता
दुख सुख आये जाए
जो नर हरि की भक्ति करे
स्वयं हरि भवसागर तराये

कैसी हो पूजा कैसी भक्ति
जो हरि प्रसन्न हो जाये
कैसा तीर्थ कैसी हो वाणी
जन्म ये सफल हो जाये
तेरे घर सब कुछ है पभु
तू दे जैसा तुझे भाए हरि भजन...
मन चंचल कभी ना थके
जन्म जन्म भटकाए
तन थक जाए मन ना थके
अंत समय पछताए

तेरी करनी तुझे है भरनी
पाप पुण्य जो भी कमाए
काल चक्र चलता रहता
दुख सुख आये जाए
जो नर हरि की भक्ति करे
स्वयं हरि भवसागर तराये

कैसी हो पूजा कैसी भक्ति
जो हरि प्रसन्न हो जाये
कैसा तीर्थ कैसी हो वाणी
जन्म ये सफल हो जाये
तेरे घर सब कुछ है पभु
तू दे जैसा तुझे भाए हरि भजन...

हरि भजन... #कविता