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pushpindersingh2135
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Pushpinder Singh

अभी तलाश में हूँ मैं अपनी लोग कहते हैं मुझे देखा है कहीं

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Pushpinder Singh

दूर से देख के महसूस होता है ऐसे
ये आसमाँ ज़मी को छू रहा है जैसे

ख़ामोश मंज़र में कभी यूँ लगता है
शायद तुमने आवाज़ दी  मुझे  जैसे

वक़्त  के  फ़ासले  और ये  ज़िन्दगी
तुम्हें देखे हुए गुज़रीं हो सदियां जैसे

©Pushpinder Singh
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Pushpinder Singh

कुछ लम्हे फाड़ रहा हूँ मैं
कुछ यादें भुला रहा हूँ मैं

उदासी में तन्हाई भाती है
चरागों को बुझा रहा हूँ मैं

आज उनसे बहस हो गई
जिनको ख़ुदा मानता हूँ मैं

दिल न देखो तो अच्छा है
कई राज़ छुपा रखा हूँ मैं

आज़माइश की फ़ितरत है
हर शक़्स आज़मा रहा हूँ मैं

नुमाइश जहाँ का गहना है
ये लत कुछ ओढ़ रखा हूँ मैं

लोग कहते हैं बे-अक्ल हूँ मैं
तुम कहो तो मान जाता हूँ मैं

और कहाँ तक साथ चलोगे
इन यादों से पूछ रहा हूँ मैं
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Pushpinder Singh

श्रद्धांजलि
स्वरों की महफ़िल का एक मोती डूब गया
चमकता सितारा आसमाँ का कहीं खो गया 
कला का कलाकार कला में ही मिल गया
साथ अपने कई धुन कई बंदिशें तराने ले गया
एक दीपक बुझ गया एक संस्कृति खो गयी
राग के स्वरों में से पंचम कहीं चला गया
बिखर गई लय... ताल का थिरकना रुक गया
संगीत की रूह का परमात्मा से मिलन हो गया
स्वरों की महफ़िल का एक मोती डूब गया श्रद्धांजलि

श्रद्धांजलि

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Pushpinder Singh

सूरत बदली है तो सीरत भी बदली होगी
किसी आरज़ू ने अपनी तक़दीर बदली होगी

जब था तो एहसास न था अब नहीं है तो है
बस उसी तमन्ना की मन में खलबली होगी

सुकून है जिस राह पर उसपे हैं कांटे बहुत 
पैरों के ज़ख्म सह कर तस्वीर बदली होगी
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Pushpinder Singh

अपने कदमों पे अब मुझे यकीं नहीं
उस राह ले जाते हैं जहां मेरा घर नहीं

अजनबी चेहरों में इक चेहरा ढूंढता हूँ
मंज़िल तक साथ रहे कुछ दूर तक नहीं

जान कर भी जो अनजान बन कर रहे
वो ही सिकंदर जहाँ का और कोई नहीं

अपने नशेमन से निकलो तो पता चले
काँटों भरी राह पे चलना आसान नहीं
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Pushpinder Singh

जाने....क्या रूठ गए हो तुम
मेरे आँगन से भूल गए गुज़रना इस बार
एक टक आँखें फाड़ देख रहे हैं
कुछ गेंदे चमेली और कुछ गंधराज
नन्ही नन्ही हरी घास भी पूछ रही है
क्या उँगरें अगर तुम कहो तो इस बार
या सोये रहें अभी और कुछ दिन चार
लगता है खिटपिट हुई है पवन से इस बार
अपनी गोद में बिठाने से क्या कर दिया इनकार
उधर सूरज ने तपा रखा है सारा दिन और रात
ज़मीं से उगलने लगी है जैसे अब आग
देखो अब और देर न करो बरसो ज़रा झूम के
जो भी हुई है खिटपिट सुलझा लो प्रेम सुकून से
कहीं बीत न जाये ऋतु सावन की बेकरार
कहीं फीकी न रह जाये प्रीत प्रेम की इस बार
अब बरस भी जाओ राह देख रही मयूरी भी
और देर न करो कह रहे हैं चांदनी हरश्रृंगार....
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Pushpinder Singh

हाथों की कलाई को फिर से इंतज़ार है
कच्चे धागे में अटूट बंधन का प्यार है
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Pushpinder Singh

न दिल मिले न आरज़ू जगी न जुस्तजू कोई
तेरे करीब रह कर भी रही न करीबियां कोई

इक राह के हैं हमसफ़र मंज़िल है जुदा जुदा
दो किनारे इक नदी के न ख़बर न पता कोई

इक मकां के दो बाशिंदे न गुफ्तगू न बात कोई
कोई है जो है अजनबी जैसे हो मुसाफ़िर कोई

घुट के दम तोड़ गईं चंद ख्वाइशें चंद अरमान
इक बुत हूँ रखे कहीं हो रोशनी या अंधेरा कोई
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Pushpinder Singh

इस क़दर हमसे दिल्लगी की है
ऐ ख़ुदा तूने बड़ी बेरुखी की है

इक मुहब्बत ही मांगी थी ज़ालिम
दर्द-ए-ग़म की सौगात मिली है

दूर तक जाके हम लौट आए हैं
कानों में किसने मेरे आवाज़ दी है

टूट जाता है शीशे की तरह दिल
इतनी नाज़ुक चीज़ इंसां को दी है

ऐ हवा ज़रा धीमे धीमे से गुज़र यहाँ
ख़्वाबों के बिखरे पन्नों की कब्र खुदी है
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Pushpinder Singh

बिजली गिरा के काले मेघ कहो कहाँ चले
मस्तानो का दिल जला कर कहो कहाँ चले

कुछ देर पहले अभी कड़के थे जोर जोर से
बिरहा का दुख देकर अब शांत कहाँ चले

रिमझिम रिमझिम फुहार और ठंडी पवन चले
उमंगों का सागर उमड़ा कर कहो कहाँ चले

सावन की ऋतु और मल्हार गाती नन्हीं बूँदें
ताल की थाप पर मयूर को नचा अब कहाँ चले
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